प्रज्ञा योग क्यों और कैसे ? Why and how Pragya Yoga?
स्वस्थ और सुखी जीवन मनुष्य की प्रमुख आवयश्कता रही है। समाज के किसी भी स्तर में रहने वाला व्यक्ति स्वस्थ व् सुखी जीवन की आवश्यकता अनुभव करता है।
स्वास्थ्य केवल शरीरिक ही नहीं मानसिक और आत्मिक भी होता है। जो व्यक्ति केवल शरीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देते है वे सफल नहीं हो पाते है। भारतीय संस्कृति सदैव शरीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को महत्त्व देती रही है।
समग्र स्वास्थ्य के लिए हमे योग युक्त पद्धति को अपनाना जरुरी है। जब हम योग की बात करते है तो लोग सीधे योगासन पर ही पहुंच जाते है। अष्टांग योग के कर्म में यम, नियम, आसन, प्रणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधी आता है।
आसन तो तीसरे नंबर पर आता है। अगर यम - नियम का पालन नहीं किया जय तो योगासन का लाभ ठीक से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
साथ की स्वस्थ रहने के लिए आहार-विहार और दिनचर्या का सयंम भी आवयश्क है। अष्टांग योग एक स्वस्थ और सुखी जीवन पूरा करने के लिए ऐसा फार्मूला है।
यह प्राज्ञ योग स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए बेहद उपयोगी है। इस प्रज्ञा योग के प्रणेता श्रद्धेय गुरुदेव, पं. श्री राम शर्मा आचार्य जी है।
गतियोग/ वार्मअप :
योगाभ्यास प्रारम्भ करने से पूर्व शरीर के मांसपेशियों के जकरण को दूर करने के लिए जरुरी है।प्रज्ञा योग - Pragy Yoga
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१. ताड़ासन : "ॐ भूः"
धीरे धीरे श्वास अंदर लेते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाते हुए दोनो पैरों के पंजे पर खड़े होते हुए शरीर को ऊपर की ओर खीचें, साथ ही दृष्टि आकाश की ओर होनी चाहिए।
२. पादहस्तासन : "ॐ भुवः"
श्वास छोड़ते हुए कमर से ऊपर के भाग को गर्दन के साथ निचे की ओर लेकर आये। दोनों हाथों को जमीं से स्पर्श करने का प्रयास करें।३. वज्रासन: "ॐ स्वः"
पादहस्तासन के स्थिति से धीरे से दोनों घुटने को मोड़ते हुए, दोनों पैरों के पंजे को पीछे ले जाएँ वज्रासन में बैठ जाएँ। कमर से गर्दन तक रीद की हड्डी को सीधा रखें, श्वास की गति सामान्य रखिये।४. उष्ट्रासन: "तत"
वज्रासन के स्थिति से घुटने के बल खड़े हो जाये दोनों हाथ के पंजे को श्वास लेते हुए पैरों के पजें से मिलाये।५. योग मुद्रा : " सवितुः "
इसमें वज्रासन की स्थिति में आते हुए दोनों हाथों को पीठ के पीछे से लेते हुए लॉक करें। श्वास छोड़ते हुए आगे की ओर झुकते हुए सर को जमीं से स्पर्श कराएं।६. अर्ध ताड़ासन : "वरेण्यं"
अब धीरे से श्वास लेते हुए सर को ऊपर उठायें। वज्रासन की स्थिति में ही बैठे रहें।७. शशांकासन : "भर्गो"
अब श्वास छोड़ते हुए कमर से ऊपर के भाग को निचे की ओर झुकाये। सर को जमीं से स्पर्श करा कर रखें।८. भुजंगासन : " देवस्य "
इस स्थिति में शशांकासन में रहते हुए हाथ और पैर वही रखें। श्वास लेते हुए कमर से आगे के भाग को आगे लें जाएँ। घुटे और जांघ जमीन को स्पर्श करेगा पैरों के पंजे को पीछें की और रखें।१०. तिर्यक भुजंगासन ( बाएं ): "धीमहि "
इसमें भुजंगासन में ही रहें, केवल गर्दन को बाईं की ओर मोड़ते हुए दाईं पैर के एड़ी को देखें।
९. तिर्यक भुजंगासन ( दाएं ): "धियो "
इसमें भुजंगासन में ही रहें, केवल गर्दन को दाईं की ओर मोड़ते हुए बाएं पैर के एड़ी को देखें।
१२. अर्ध ताड़ासन : "प्रचोदयात"
यह आसन कर्म ६ के तरह ही है। अब धीरे से श्वास लेते हुए सर को ऊपर उठायें। वज्रासन की स्थिति में ही बैठे रहें।
१३. उतकटासन: "भूः "
इस आसन में दोनों हाथों से जमीन को छूते हुए पैर के पंजे के बल प्रणाम की मुद्रा में बैठते है। श्वास की गति सामान्य रहेगी।१४. पादहस्तासन : "भुवः"
श्वास छोड़ते हुए दोनों हाथों को जमीन से स्पर्श कृते हुए कमर को सीधा करते हुए पादहस्तासन की स्थिति में आएं। दोनों हाथों को जमीं से स्पर्श करने का प्रयास करें।१५ . ताड़ासन : "स्वः"
धीरे धीरे श्वास अंदर लेते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाते हुए दोनो पैरों के पंजे पर खड़े होते हुए शरीर को ऊपर की ओर खीचें, साथ ही दृष्टि आकाश की ओर होनी चाहिए।Family importance of yoga in hindi? l योग का पारिवारिक महत्व in Hindi?
पारिवारिक महत्व:
Family importance of yoga in hindi? योग का पारिवारिक महत्व in Hindi? व्यक्ति
के विकास की नींव परिवार ही होती है,परिवार निर्माण एक ऐसी विशिष्ट साधना
है, जिसमें श्रद्धा, विश्वास, त्याग, तपस्या, प्रतिभा और संयम का परिचय
देना पड़ता है।
परिवार समाज की इकाई होती है।
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लोभ,मोह, अहंकार का त्याग कर संतोषी, विनम्र और विवेकशील होकर अपने कर्तव्यों को निभाते हुए जो इस योग पथ पर चलते है, वही सही अर्थों में सद्गृहस्थ कहलाते है।
हमारे भारतीय संस्कृति में गृहस्थ एक तपोवन है। की संज्ञा दी गई है।
परंतु इस समय समाज में एकल परिवारों का चलन से हो गया है, जिसके कारण परिवारों में अनेक प्रकार के समस्या उतपन्न होने लगा है।
क्योंकि इसमें नैतिक मूल्यों की ह्रास हो रहा है। इन सभी समस्याओं का समाधान योग में संभव है।
अष्टांग योग में आठ अंग होते हैं जिसमें यम और नियम है जो हमारे व्यवहारिक पक्ष को शुद्ध करता है और हमें निर्मल बनता है।
योग युक्त जीवन जीने वाले मनुष्य अच्छे परिवार की रचना कर सकता है।
क्योंकि योग के अंतर्गत जितनी भी साधना पद्धतियां है, उनके द्वारा बताए गए शान्ति, प्रेम, सहयोग, संयम, सहिष्णुता, साधना, सत्कर्म और धैर्य के मार्ग से ही अपने और अपने परिवार को सुखमय बनाया जा सकता है। स्वार्थपरता और भौतिक सुखों को प्राप्त करने की चाह को सत्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रह के द्वारा नियमित व नियंत्रित किया जा सकता है।
योग के यम और नियम तथा अनुशासित जीवन पद्धति को अपनाकर पारिवारिक उन्नति की जा सकती है। इस तरह से योग के मार्ग पर चलकर परिवार को सुसंस्कारित और श्रेष्ठ जीवन बनाया जा सकता है।
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