योग क्या है ? What Is Yoga ?
योग क्या है ? What Is Yoga ? योग एक सम्यक जीवन का विज्ञान है, अतः इसका समावेश हमारे दैनिक जीवन में एक नित्यचर्या के रूप में होनी चाहिए, यह हमारे व्यक्तित्व के शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, भावनात्मक, अतीन्द्रिय और आध्यात्मिक सभी पहलुओं को प्रभावित करता है।
"योग अतीत के गर्भ में प्रसुप्त कोई कपोल- कथा नहीं है। यह वर्तमान की सार्वधिक मूल्यवान विरासत है । यह वर्तमान युग की अनिवार्य आवश्यकता और आने वाले युग की संस्कृति है।"
- स्वामी सत्यानन्द सरस्वती
योग शब्द का अर्थ है 'ऐक्य' या 'एकत्व' होता है और यह संस्कृत धातु 'युज' से बना है जिसका अर्थ होता है 'जोड़ना'। - स्वामी सत्यानन्द सरस्वती
व्यवहारिक स्तर पर योग शरीर, मन और भावनाओं में संतुलन और सामंजस्य स्थापित करेने का एक साधन है ।
आसन, प्राणायाम, मुद्रा, बांध, षट्कर्म और ध्यान के अभ्यास से यह संतुलन पाया जा सकता है।
स्थूल शरीर से प्रारंभ कर योग मानसिक और भावनात्मक स्तर की और अग्रसर होता है।
अनेक लोग दैनिक जीवन के दबावों और आपसी व्यवहारों से उत्पन्न भय और मानसिक रोगों से पीड़ित होते हैं योग समस्त व्याधियों को निर्मूल तो नहीं कर सकता।
परन्तु उनसे जूझने की प्रमाणिक विधि प्रदान कर सकता है ।
Read More: प्राज्ञ योग क्यों और कैसे ? Why and how Pragya Yoga?
अष्टांग योग के यह आठ अंग हैं-
(1)यम (2)नियम (3)आसन (4)प्राणायम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7)ध्यान और (8)समाधि।
ऊपर बताये गए आठ अंगों के अपने-अपने उप अंग भी हैं। वर्तमान समय में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान, जो कि सही मार्ग नहीं है। योग को प्रथम यम से ही सिखना होता है।
1.यम- (Yama):
सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह।
2.नियम- (Niyama):
शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान।
3.आसन- (Asana):
आसनों के अनेक प्रकार हैं। आसन के संबंध में हठयोग प्रदीपिका, घरेण्ड संहिता तथा योगाशिखोपनिषद् में विस्तार से वर्णन मिलता है।
4.प्राणायाम- (pranayama):
नाड़ी शोधन और जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायम के भी अनेकों प्रकार हैं।
5.प्रत्याहार- (Pratyahara):
इंद्रियों को विषयों से हटाकर अंतरमुख करने का नाम ही प्रत्याहार है।
6.धारणा- (Dharana):
चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।
7.ध्यान- (Meditation):
ध्यान का अर्थ है सदा जाग्रत या साक्षी भाव में रहना अर्थात भूत और भविष्य की कल्पना तथा विचार से परे पूर्णत: वर्तमान में जीना।8.समाधि- (Samadhi) समाधि के दो प्रकार है- संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात। समाधि मोक्ष है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए उपरोक्त सात कदम क्रमश: चलना होता है।
योगाभ्यास से भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक स्तरों के आपसी संबंधों के प्रति सजगता का विकास होता है। साथ ही यह सजगता भी आती है की इनमें से किसी एक में असंतुलन उत्पन्न होने पर अन्य भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। कर्मश: यह सजगता अस्तित्व के सूक्ष्म क्षेत्रों को समझने की क्षमता प्रदान करती है ।
No comments:
Post a Comment