योग का शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक पारिवारिक महत्व for you Yoga in hindi?
योग का महत्व:
योग का शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक पारिवारिक महत्व for you Yoga in hindi योग विद्या इस भारतवर्ष की अति प्राचीन विद्या है, यह योग विद्या हमारे ऋषि-मुनि और समस्त मानव जाति के उद्धार करने में समर्थ है, साथ ही योग विद्या से अपने व्यक्तित्व को सुसंस्कृत व समुन्नत बनाना सम्भव है।
आज के आधुनिक युग में भय, तनाव, चिंता आदि से ग्रस्त मनुष्य ने इस योगविद्या को अपनाया है।
यह योगविद्या अपने प्रभाव से अत्यंत ही लोकप्रिय हुआ है।
इस योगविद्या पर आज के समय में पूरे विश्व में शोध कार्य हो रहे हैं।
यह जितना साधारण मनुष्य के लिए उपयोगी है, उतना ही योग साधकों के लिए भी है।
इसके द्वारा मनुष्य अटूट स्वास्थ्य, दीर्घायु, दिव्य जीवन, अलौकिक विभूतियाँ, मुक्ति मोक्ष आदि सभी कुछ प्राप्त कर सकता है।
परन्तु आज के भगदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य रोगों से ज्यादा ग्रस्त है, और योग ऐसे में मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक स्वास्थ्य भी प्रदान करता है।
विकास के इस दौर में योग का क्षेत्र बहुत ही व्यापक हो रहा है।
परन्तु आज के भगदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य रोगों से ज्यादा ग्रस्त है, और योग ऐसे में मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक स्वास्थ्य भी प्रदान करता है।
विकास के इस दौर में योग का क्षेत्र बहुत ही व्यापक हो रहा है।
शारीरिक महत्व:
अष्टांग योग के तीसरे और चौथे अंग में आसन व प्राणायाम से शारीरिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
इससे शारीरिक शक्तियों को विकसित किया जाता है, जिससे शरीर स्वस्थ बना रहता है।
आसन व प्राणायाम के द्वारा सभी अंग सही ढंग से कार्य करने लगते है। तथा अंतःस्रावी तंत्र प्रभावित होता है, और ग्रन्थियों के स्राव संतुलित होते है, जिससे शरीर स्वस्थ होता है।
योग एक स्वस्थ जीवन जीने की कला है, जिसे अपनाने से शारिरीक स्वास्थ्य प्राप्त होता है साथ ही जीवन सुव्यवस्थित हो जाता है।
वही हठयोग के अभ्यास से शरीर में व्याप्त मल को षट्कर्म के द्वारा बाहर निकाल कर शरीर शुद्ध किया जाता है।
योग एक स्वस्थ जीवन जीने की कला है, जिसे अपनाने से शारिरीक स्वास्थ्य प्राप्त होता है साथ ही जीवन सुव्यवस्थित हो जाता है।
वही हठयोग के अभ्यास से शरीर में व्याप्त मल को षट्कर्म के द्वारा बाहर निकाल कर शरीर शुद्ध किया जाता है।
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मानसिक महत्व:
योग के द्वारा शारिरीक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी प्राप्त किया जा सकता है।
आज के युग में मानसिक रोगों की वृद्धि तेज गति से हो रही है, जिसके कारण मानसिक रोग भयावह रूप लेते जा रहा है।
जिसके निराकरण में आधुनिक विज्ञान असमर्थ महसूस कर रहा है। इन मानसिक तनाव आदि समस्याओं से निपटने के लिए योग एक सफल व कारगर चिकित्सा पद्धति है।
जिसके सहयोग से सम्पूर्ण स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है।
साथ ही बच्चों के मानसिक विकास हेतु प्राणायाम का अभ्यास आवश्यक है, क्योंकि इससे स्मरण शक्ति व ज्ञान के विकास में अधिक लाभदायक है।
मानसिक रोग मन से ही उपजते है। यदि मन स्वस्थ हो तो शरीर भी स्वस्थ रहता है, क्योंकि मन और शरीर के बीच घनिष्ठ संबंध होता है।
क्योंकि हमारे मन में जो होता है वही शरीर के द्वारा प्रकट होता है।
यदि हम नियमित योगाभ्यास करते हैं तो सारे मानसिक रोग नष्ट हो जाएंगे, मन के सही होने से स्वतः ही शरीर स्वस्थ हो हो जाएगा।
मानसिक रोग मन से ही उपजते है। यदि मन स्वस्थ हो तो शरीर भी स्वस्थ रहता है, क्योंकि मन और शरीर के बीच घनिष्ठ संबंध होता है।
क्योंकि हमारे मन में जो होता है वही शरीर के द्वारा प्रकट होता है।
यदि हम नियमित योगाभ्यास करते हैं तो सारे मानसिक रोग नष्ट हो जाएंगे, मन के सही होने से स्वतः ही शरीर स्वस्थ हो हो जाएगा।
आध्यात्मिक महत्व:
मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति होता है। और इस महान लक्ष्य की प्राप्ति मन के द्वारा ही सम्भव है।
क्योंकि यह मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है। शास्त्रों में इस प्रकार वर्णित है--
'मन एव मनुष्याणं कारणं बन्ध मोक्षयोः।'
अर्थात मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है। इसीलिए योग साधना में मन को ईश्वरोन्मुख बना कर तत्वज्ञान की प्राप्ति की जा सकती है। योग के द्वारा अनेक जन्मों के कुसंस्कारों के से मलिन हुए मन और चित्त को निर्मल कर आत्मा के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान कराया जाता है।
योग साधना के द्वारा हमारे इन्द्रियों के चंचलता को कम कर अन्तर्मुखी किया जाता है।
योग साधना के द्वारा दिव्य दृष्टि प्राप्त किया जाता है।
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